बुधवार, 25 जून 2014

 रमईकाका की जन्मशती:

  बौछार की भूमिका में डां. रामविलास शर्मा ने  लिखा था-उनकी गंभीर रचनाओं में एक विद्रोही किसान का उदात्त स्वर है,जो समाज में अपने महत्त्वपूर्ण स्थान को पहचान रहा है और अधिकार पाने के लिए कटिबद्ध हो गया है।
धरती हमारि –इसी कोटि की रचना है।
 धरती हमारि
धरती हमारि धरती हमारि
हैं चरती परती गउवन कै /औ ख्यातन कै धरती हमारि।
धरती हमारि धरती हमारि।
हम अपनी छाती के बल ते धरती मा फारु चलाइति है।
माटी के नान्हे कन कन मा,हमहीं सोना उपजाइति है॥
अपने सोनरखे पसीना ते ,रयातौ मा ख्यात बनावा हम।
मुरदा मानौ जिन्दा हुइगौ,जहं लोखर अपन छुवावा हम ॥
कंकरीली उसर बंजर परती,धरती भुडगरि नीबरि जरजरि।
बसि हमरे पौरुख के बल ते ,होइगै हरियरि दनगरि बलगरि॥
हम तरक सहित ब्वावा सिरजा,सो धरती है हमका पियारि॥
धरती हमारि धरती हमारि॥
हमरे तरवन की खाल घिसी,औ रकतु पसीना एकु कीन।
धरती मैया की सेवा मा,हम तपसिन का अस भेसु कीन॥
है सहित ताप के बडे घात,परचंड लूक कटकट सरदी।
रवांवन-रवांवन मा रमिति रोजु,चनदनु असि धरती कै गरदी॥
ई धरती का जोते जोते,केतने बैलन के खुर घिसिगे।
निखवखि फरुहा फारा खुरपी,ई माटी मा हैं घुलि मिलिगे॥
अपने चरनन की धूरि जहां,बाबा दादा धरैगे संभारि॥
धरती हमारि धरती हमारि॥
हम हन धरती के बरदानी,जहं मूठी भरि छांडति बेसार।
भरि जाति कोख मा धरती के,अनगिनत परानिन के अहार॥
ई हमरी मूठी के दाना,ढ्यालन की छाती फारि फारि ।
है कचकचाय कै निकरि परति,लहि पौरुखु बल फुरती हमारि॥
हम अनडिगे पैसरम के,हैं साच्छी सूरज औ अकास।
परचंड अगिनि जी बरसाएनि,हम पर दुपहरि मा जेठ मास॥
ई हैं रनख्यात जिन्दगी के,जिनमा जीतेन हम हारि हारि॥
धरती हमारि धरती हमारि॥
प्रस्तुति:भारतेन्दु मिश्र


रविवार, 15 जून 2014



रमई काका ग्रामीड जीवन की विसंगति के चतुर चितेरे हैं उनकी कबिता देखिए
-छीछाल्यादरि-




लरिकउनू बी ए पास किहिनि, पुतहू का बैरू ककहरा ते।
वह करिया अच्छरू भैंसि कहं, यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो।

दिनु राति बिलइती बोली मां, उइ गिटपिट गिटपिट बोलि रहे।
बहुरेवा सुनि सुनि सिटपिटाति, यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो।

लरिकऊ कहेनि वाटर दइदे, बहुरेवा पाथर लइ आई।
यतने मा मचिगा भगमच्छरू, यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो।

उन अंगरेजी मां फूल कहा, वह गरगु होइगे फूलि फूलि।
उन डेमफूल कह डांटि लीनि, यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो।

बनिगा भोजन तब थरिया ता, उन लाय धरे छूरी कांटा।
डरि भागि बहुरिया चउका ते, यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो।

लरिकऊ चले असनान करै, तब साबुन का उन सोप कहा।
बहुरेवा लइकै सूप चली, यह छीछाल्यादरि द्याखौ तो। 

प्रस्तुति:भारतेन्दु मिश्र