बुधवार, 7 सितंबर 2011


प्रकाश्य उपन्यास(चन्दावती)

किस्त दो :चन्दावती कि नींद

बहुत थकि गय रहै चन्दावती।खटिया पर पहुडतै खन नीद आय गय-सब पुरानी बातै सनीमा तना यादि आवै लागीं।...तीस साल पहिले ,वहि दिन चन्दावती सकपहिता खातिर बथुई आनय गय रहै। गोहूँ के ख्यातन मा ई साल न मालुम कहाँ ते बथुई फाटि परी रहै। हाल यू कि जो नीके ते निकावा न जाय तौ पूरी गेहूँ कि फसल चौपट हुइ जाय। जाडे के दिन रहैं। उर्द कि फसल बढिया भइ रहै। चन्दावती अपनि लाल चुनरिया ओढे हनुमान दादा के ख्यात मा बथुई बिनती रहैं। हनुमान दादा अपने रहट पर कटहर के बिरवा के तरे हउदिया तीर बइठ रहैं। न चन्दावती उनका देखिस न वुइ चन्दावती का। तब चन्दावती जवान रहैसुन्दरी तो रहबै कीन। वहि दिन चन्दावती बथुई बीनै के साथ-अपनी तरंग मा जोर जोर ते --

नदि नारे न जाओ स्याम पइयाँ परी,

नदि नारे जो जायो तो जइबै कियो

बीच धारै न जाओ स्याम पइयाँ परी।

बीच धारै जो जायो तो जइबे कियो

वुइ पारै न जाव स्याम पइयाँ परी।

वुइ पारै जो जायो तो जइबे कियो

सँग सवतिया न लाओ स्याम पइयाँ परी। -- यहै गाना गउती रहैं। हनुमान दादा तब हट्टे-कट्टे पहलवान रहैं। यहि गाना मा न मालुम कउनि बात रहै कि हनुमान दादा चन्दावती ते अपन जिउ हारिगे। जान पहिचान तो पहिलेहे ते रहै। गाँवन मा सब याक दुसरे के घर परिवार का बिना बताये जानि लेति है। वैसे कैइयो लँउडे वहिके पीछे परे रहै,लेकिन आजु हनुमान दादा वहिकी तरफ बढिगे , राजा सांतनु जइसे मतसगन्धा की खुसबू ते वाहिकी वार खिंचि गये रहैं वही तना वहि बेरिया हनुमान दादा चन्दावती की तरफ खिंचिगे। युहु गाना उनका बहुतै नीक लागति रहै,जब चन्दावती गाना खतम कइ चुकी तब वहिके तीर पहुचि के पूछेनि- को आय रे?

चन्दावती सिटपिटाय गय।..फिरि सँभरि के बोली-पाँय लागी दादा, हम चन्दावती।

हमरे ख्यात मा का कइ रही हौ?

बथुई बीनिति है........

बीनि.... लेव।

बसि बहुति हुइगै सकपहिता भरेक...हुइगै

अरे अउरु बीनि लेव। का तुमका बथुई खातिर मना कइ रहेन है।

बसि बहुति हुइगै

तुम्हारि गउनई बहुतै नीकि है,तुम्हार गाना सुनिकै तो हमार जिउ जुडाय गवा।

चन्दावती सरमाय गयीं,तिनुक नयन चमकाय के कहेनि-

कोऊ ते कहेव ना दादा!

काहे?

तुम तौ सबु जानति हौ,बेवा मेहेरुआ कहूँ गाना गाय सकती हैं।..हम तौ बाल-बिधवा हन। ...का करी भउजी जउनु बतायेनि वहै रीति निभाइति है।

अउरु का बतायेनि रहै भउजी?

सुर्ज बूडै वाले हैं।..अबही रोटी प्वावैक है। हमरे दद्दू का हमरेहे हाथे कि पनेथी नीकि लागति है।..कबहूँ फुरसत म बतइबे....,अच्छा पाँय लागी।


चन्दावती चली गय ,लेकिन राम जानै का भवा वहिका गाना- नदि नारे न जाओ...हनुमान दादा के करेजे मा कहूँ भीतर तके समाय गवा रहै। बडी देर तके वुइ वहै गाना मनहेम बार बार दोहरावति रहे। रेडियो के बडे सौखीन रहै। चहै ख्यात मा जाँय, चहै बाग मा ट्रांजिस्टर अक्सर अपने साथै लइ कै चलैं। आजु चन्दावती क्यार गाना उनका बेसुध कइगा ,रेडियो पर वुइ यहै गाना सैकरन दफा सुनि चुके रहैं तेहूँ चन्दावती के गावै के तरीके मा कुछु अलगै नसा रहै जो जादू करति चला गवा। सोने जस वहिका रंगु ती पर लाल चुनरी ओढिके वा हरे भरे गोंहू के ख्यात मा बइठि बथुई बीनति रहै, मालुम होति रहै मानौ कउनिव सरग कि अपसरा उनके ख्यात मा उतरि आयी है। रामलीला मा वुइ कइयौ दफे वहिका कनिया उठाय चुके रहैं लेकिन आजु अकेले मा कुछ औरुइ जादू हुइगा रहै।

खुबसूरत तो चन्दावती रहबै कीन रंगु रूपु अइस कि बँभनन ठकुरन के घर की सबै बिटिया मेहेरुआ वहिके आगे नौकरानी लागैं,बसि यू समझि लेव कि पूरे दौलतिपुर मा वसि सुन्दरी बिटेवा न रहै तब। अब वहिके घरमा तेलु प्यारै क्यार खानदानी काम सबु खतम हुइगा रहै बिजुली वाला कोल्हू बगल के गाँव सुमेरपुर मा लागि गवा रहै। अब चन्दावती के दद्दू मँजूरी करै लाग रहैं।दुइ

बिगहा खेती मा गुजारा मुस्किल हुइगा रहै। तेहू भइसिया के दूध ते चन्दावती के घरमा खाय पियै की बहुत मुस्किल न रहै।

सुमेरपुर मा चन्दावती बेही गयी रहैं मुला किस्मति क्यार खेलु द्याखौ अबही गउनव न भा रहै कि चन्दावती क्यार मंसवा हैजा-म खतम हुइगा। बडी दौड-भाग कीन्हेनि लखनऊ के मेडिकल कालिज तके लइगे लेकिन वहु बचि न पावा। फिरि ससुरारि वाले कबहूँ चन्दावती क्यार गउना न करायेनि याक दाँय चन्दावती के दद्दू सुमेरपुर जायके बिनती कीन्हेनि तेहूँ कुछु बात न बनी।चन्दावती के ससुर साफ-साफ कहेनि –‘संकर भइया, तुम्हार बहिनिया मनहूस है..बिहाव होतै अपने मंसवा का खायगै,..वहिते अब हमार कउनौ सरबन्ध नही है। हमरे लेखे हमरे लरिकवा के साथ यहौ रिस्ता मरिगवा।


चन्दावती के दद्दू बुढवा के बहुत हाथ पाँय जोरेनि लेकिन वहु टस ते मस न भवा। आखिरकार चन्दावती अपने मइकेहेम रहि गयीं,बाल बिधवा के खातिर अउरु कउनौ सहारा न रहै। गाँव कि बडी बूढी चन्दावती क मनहूस कहै लागी रहैं, लेकिन खुसमिजाज रहै चन्दा। बिधवा जीवन के दुख ते यकदम अंजान ,अबही वहिकी लरिकई वाले सिकडी-गोट्टा-छुपी-छुपउव्वल ख्यालै वाले दिन रहै। अबही जवानी चढि रही रहै । बिहाव तो हुइगा रहै-मुला पति परमेसुर ते संपर्क न हुइ पावा रहै। हियाँ गाँव कि गुँइयन के साथ चन्दा मगन रहै। हुइ सकति है अकेलेम बइठिके रोवति होय,लेकिन गाँवमा कोऊ वहिका रोवति नही देखिसि। संकर अपनी बहिनी का बडे दुलार ते राखति रहैं। संकर कि दुलहिनि चन्दा ते घर के कामकाज करावै लागि रहै। चन्दा दौरि-दौरि सब काम करै लागि रहै। समझदार तौ वा रहबै कीन।

जउनी मेहेरुआ वहिते चिढती रहैं वइ चन्दा क्यार नाव बिगारि दीन्हेनि रहै। कउनौ चंडो कहै,कउनौ रंडो कहै तो कउनिव बुढिया रंडो चंडो नाव धरि दीन्हेसि रहै। दौलतिपुर मा नाव धरै केरि यह पुरानि परंपरा आय। बहरहाल चन्दावती कहै सुनै कि फिकिर न करति रहै, वा खुस रहै।

दुसरे दिन हनुमान दादा संकर का बोलवायेनि। संकर घबराय गे ,काहेते वहु दादा ते एक हजार रुपया कर्जु लीन्हेसि रहै। संकर सकुचाति भये हनुमान दादा तीर पहुँचे।हनुमान दादा अपने चौतरा पर बइठ रहैं।

दादा पाँय लागी।

खुस रहौ।आओ,संकर! आओ।...कहौ का हाल चाल ?

तुमरी किरपा ते सबु ठीक चलि रहा है।

चन्दा के ससुरारि वाले का कहेनि?

बुढवा कहेसि हमरे लरिका के साथै यह रिस्तेदारी खतम हुइगै।

हाँ वहौ ठीक कहति है-जब जवान लरिका मरि गवा तो फिरि बहुरिया का घर मा कइसे राखै, चन्दा क्यार गउना?

गउना कहाँ हुइ पावा रहै दादा।...गउने केरि सब तयारी कइ लीन रहै...कर्जौ हुइगा लेकिन चन्दा केरि किस्मति फूटि गय...का करी दादा।

परेसान न हो संकर! जउनु सबु बिधाता स्वाचति है,तउनु करति है।तुलसी बाबा कहेनि है-होइहै सोइ जो राम रचि राखा..

ठीकै कहति हौ दादा!..लेकिन अब हमरे ऊपर बहुति बडी जिम्मेदारी आय गय है।...अब तुमते का छिपायी दादा,..गाँव के कुछु सोहदे हमरी चन्दा कि ताक झाँक मा रहति हैं।..अब हम का करी,वहिका रूपुइ अइस है कि ..

यह तौ अच्छी बात है...कोई ठीक लरिका होय तौ...चन्दा क्यार दुबारा बिहाव करि देव।

बिहाव करै वाला कउनौ नही है..सब मउज ले वाले है..बेवा ते बिहाव को करी?बडकऊ तेवारी क्यार कमलेस,मिसिरन क्यार बिनोद ई दुनहू चन्दावती के चक्कर मा हैं।

..इनके दुनहू के तौ बिहाव हुइ चुके हैं..दुनहू लरिका मेहेरुआ वाले हैं।

यहै तौ..का बताई?...कुछु समझिम नही आवति..

हमरी मदति कि जरूरति होय तो बतायो..तुम कहौ तो तेवारी औ मिसिर ते बात करी।

नाही दादा!..बात-क बतंगडु बनि जायी। चन्दा कि बदनामिव होई सेंति मेति,......कोई अउरि जतन करैक परी।

या बात तो ठीक कहति हौ,संकर!..न होय तौ कहूँ अउरु दूसर बिहाव कइ देव।

याक दाँय क्यार कर्जु तौ अबहीं निपटि नही पावा है।...फिरि जो हिम्मति करबौ करी तो दूसर लरिका कहाँ धरा है।

कोई ताजुब नही है कि हमरी तना कउनौ बिधुर मिलि जाय।

तुमरी तना कहाँ मिली..?

काहे?

अरे कहाँ तुम बाँभन देउता, कहाँ हम नीच जाति तेली।

बात तो ठीक है लेकिन हमका कउनौ एतराज नही है।.जब हमरे घरमा वुइ बेमार रहै तब मालिस करै तुमरी दुलहिन के साथ चन्दा आवति रहै। हमका वा तबहे ते बडी नीकि लागति है,कबहूँ कोऊ ते कहा नही हम आजु तुमते बताइति है।... फिर रामलीला मा वा सीता बनति रहै औ हम रावन बनिति रहै तब वहिका रूप गुन सब परखे हन।हमका कउनौ एतराज नही है। द्याखौ परेसानी तो हमहुक बहुति होई।.....लेकिन जउनु होई तउनु निपटा जायी।....पहिले तुम चन्दावती क्यार मनु लइ लेव,अपने घर मा राय मिलाय लेव। फिरि दुइ-तीन दिन मा जइस होय हमका चुप्पे बतायो।

तुम्हार जस नीक मनई-बाँभन, हमका दिया लइकै ढूढे न मिली,यू तौ हम गरीब परजा पर बहुत उपकार होई।

साफ बात या है कि तुमरी चन्दावती हमहुक बहुत नीकी लगती हैं...लेकिन अबहीं कोऊ गैर ते यह बात न कीन्हेव।

ठीक है दादा।..पाँय लागी..

खुस रहौ।..चन्दावती कि राय जरूर लइ लीन्हेव-काहे ते हमार उमिर वहिके हिसाब ते तनी जादा है।

ठीक है..संकर मनहिम अपनि खुसी दबाये अपने घर की राह लीन्हेनि। संकर कमीज के खलीता ते बीडी निकारेनि तनिक रुकिकै बीडी सुलगायेनि औ खुसी की तरंग मा फिरि घर की तरफ चलि दीन्हेनि। आजु वहिके पाँव सीधे न परि रहे रहैं।


हनुमान दादा अपनि इच्छा संकर ते कहिकै निस्चिंत हुइगे।दुइ साल पहिले उनकी दुलहिन खतम हुइगै रहै,लेकिन उनके कउनव औलादि न भै रहै। संकर घरै पहुचे।वहिके हाथ पाँव थिर न रहैं।वहु रजाना क्यार हाथ पकरिके भीतर वाली कोठरी मा खैचि लइगा।रजाना चौका लीपति रहै तो वहिके हाथ ग्वाबर मा सने रहैं,पूछेसि-

का भवा?

भीतर चलौ फिरि बताई..

अरे, तनी हाथ तो धो लेई

हाथ बादि-म धोयेव,पहिले चलौ..जरूरी बात करैक है....।

संकर रजाना कइहा भीतर कोठरी मा घसीटि लइगे। रजाना चकाय गय। संकर कहेनि-

हम हनुमान दादा के घर ते आय रहेन है। चन्दा कहाँ है?

का हुइगा...चन्दा का?..वा तौ ख्यात वार गय है।

चन्दा केर भागि जागि गवै..।

पहेली न बुझाओ..

पहेली नाई बुझाइति है..साँचौ...हमरी चन्दा केर भागि जागि गै है।

का बतावति हौ ? हमरी समझि मा नही आवा..

भवा यू कि हनुमान दादा..हमरी चन्दा ते बिहाव करै बदि तयार हैं...

का पगलाय गये हौ ?..यू भला कइसे हुइ सकति है?...कहाँ वुइ भलेमानुस

ऊची जाति के बाँभन?..कहाँ हम..

यहै तौ...हमहू कहेन दादा ते तो वुइ कहेनि ..हम तयार हन,..तुम चन्दा ते

पूछि लेव...।

फिरि?

फिरि का हमतौ कमलेस औ विनोद कि सिकाइति करै गे रहन।...हुआँ तो चन्दा कि समस्या क्यार समाधान मिलिगा।

हनुमान दादा जो चन्दा ते बिहाव कइ ल्याहै तो सब बात बनि जाई।

यहै तौ ...कहाँ राजा भोज कहाँ गंगुवा तेली वाली मसल साँचु साबित हुइ जायी।...अइस हुइ जाय तौ बहुत बडी बात हुइ जायी।..हमारि चन्दा सुकुलाइनि हुइ जायी..।

हमरी चन्दा तना खुबसूरत कउनिव दूसरि बिटिया- बहुरिया गाँव मा नही है।

यहै तौ...अब बताओ का कीन जाय?...दादा कहेनि है कि चन्दा केरि राय जरूर लइ लीन्हेव।

ठीक बात है..बाँभन है तो का भवा.,चन्दा के हिसाब ते बहुत उमिरदार हुइहैं...हम चन्दा ते पूछि ल्याबै।..लेकिन हमरी चन्दा जउनु हम कहबै वहै करिहै।

यू तौ ठीकै कहती हौ लेकिन ..जब हनुमान दादा कहेनि है तौ चन्दा केरि राय लेना जरूरी है।

हमार कुछु खरचा तो न होई ?

यहिमा हमार का खरचा होई?...जउनु कुछु परेसानी औ खरचा होई तउनु हनुमान दादा खुदै निपटिहैं।...हमतौ पहिलेहे-ते उनके कर्जदार हन,वुइ हमरी दसा का जानति है।...

..अरे असल परेसानी तौ बाँभन टोले मा होई?...वह मुसीबति हनुमान दादा खुदै निपटिहैं..वहिमा हम का करिबे...यू जो हुइ जायी तो हमहू हनुमान दादा कि सरहज बनि जइबे..।

हम साला बनि जइबे...सुकुल हनुमान दादा के सार कहे जाब..बँभनन टोले क्यार रिस्तेदार हुइ जइबे।...बाँभन देउता माने जाति हैं।

का साँचौ बाँभन देउता होति हैं?...

पुरनिहा अइस कहति रहैं...

अरे हनुमान दादा जो हमरी चन्दा ते बिहाव कइ ले तो जानौ हमरे लेखे देउतै आँय।

तुम ठीक कहती हौ.. ...जो हमार फायदा करै वहै हमार देउता।

...लेकिन गाँव मा लडाई झगडा न हुइ जाय, काहे ते हमरी समझ ते यहि बियाहे मा बाँभन टोले वाला कउनो सामिल न होई..।

या सब बात बादि कि आय पहिले चन्दा ते पूछि लेव। ..बाकी जउनु होई तउनु हनुमान दादा ते कहि द्याबै..वुइ अपने आप निपटइहैं।

जउनु खर्चा पानी लागै तउनु पहिलेहे लइ लीन्हेव।

सब बात कइ लीन जायी,पहिले चन्दा क्यार मनु लइ लेव.. फिरि हनुमान दादा अपने आप सँभरिहैं।


संकर औ रजाना दुनहू हनुमान दादा के ई प्रस्ताव ते बहुत मगन रहैं। पंडित हनुमान सुकुल चन्दा की तुलना मा उमिरि मा बडे रहैं,लेकिन का कीन जाय।हनुमान बिधुर रहै औ चन्दा बेवा दुनहू के कउनिव औलादि न रहै। दुनहू जवान रहै,बेवा औ रणुआ कि जिन्दगी

कउनिव जिन्दगी है- नकटा जीवै बुरे हवाल।गाँव समाज मा अबहिउ अइसी मेहेरुआ का अपसकुनी कहा जाति है।कउनेव कामे काजे मा बेवा मेहेरुआ का सबते पाछे धकियाय दीन जाति है ,मानौ वा कोई चंडालिनि होय। तेलियन के बिसय मा पंडित कबिता बनायेनि है - सुभ यात्रा के समय जो कहूँ तेली सामने आय जाय तो समझौ मौत निस्चित है--

इकला हिरना,दूजा स्यार

ग्वाला मिलै जो भैस सवार

तीनि कोस तक मिलै जो तेली

समझौ मौत सीस पर खेली।

गाँव समाज मा पढे-बेपढे हर तरह के पंडित होति हैं- तीमा पूजा-पाठ करावै वाले पंडित जादातर प्वाँगा होति हैं।उल्टा सीध संस्कीरत बाँचै लागति हैं बसि। अडोम- गडोम स्वाहा कइकै अपनि दच्छिना धरवाय लेति हैं। फिरी वहि दिन का पूछैक--खाना मा खीर पूरी मिलि जाति है,यहे बदि कुछु न कुछु तीज- त्यौहारु-बरतु बतावै करति हैं ।अइसे प्वाँगा पंडितन ते भगवानै बचावै। गाँव के तमाम पढे-बेपढे अबहिउ इनके इसारे पर चलति हैं। दौलतिपुर मा पंडित गिरिजा परसाद मिसिर पूजा पाठ ,किरिया-करम करावति रहैं। यहि तना की उलटी टेढी बातै यहे पन्डितउनू कीन करति रहैं।

चन्दा भइसिया का चारा पानी कइके घर मा घुसी तौ रजाना वहिका पकरि के लपटाय लीन्हेनि।चन्दावती अचकचाय गय,कुछु समझि न पायी। भौजी नन्द का चूमै लागि रहै।अपने भइया भौजी पर बोझु बनी चन्दा का यू सबु समझि मा न आवा। सालु भरि पहिले जब बिहाव भा रहै तबहूँ रजाना यहि तना चन्दा का न चूमेसि रहै। बडी देर तके रजाना चन्दावती का भेटती रहीं।आखिर चन्दा ते न रहा गवा पूँछेसि-

का भवा भौजी?...कुछु बतइहौ कि ...बसि गले लगाये रहिहौ।

अरे,चन्दा तोहारि किस्मति जागि गै...

का,भवा भौजी!..का सुमेरुपुर वाले....

वुइ नासपीटे दाढीजारन क्यार नाव न लेव....

फिरि का कउनिव लाटरी लागिगै है ?

तुम यहै समझि लेव चन्दा!...

भौजी,पहेली न बुझाओ कुछु खुलासा करौ।

हनुमान दादा का ? ... जनती हौ?

अब हनुमान दादा -क का हुइ गवा? उनका को नही जांनति?

वै तुम्हार हाथु माँगेनि है....

हमार.....हाथु...

हाँ,तोहार हाथु।..तुम उनके मन भाय गयी हौ। तोहार दद्दू अबही उनका सँदेसु लाये हैं।

हम तौ उनका नीक मनई समझिति रहै...

का भवा?..उनमा का खराबी है।

हम अइसेही ठीक हन।...कोहूकि रखैल बनिके न रहबै।

यू का कहती हौ? बिटिया!...हनुमान दादा बियाहु करै खातिर तयार है

भउजी,यू बियाहु तौ बहाना है।...ई लरबहे बँभनन क्यार..

कइसे?..

बाँभन टोले वाले हमका जियै न द्याहैं। कमलेस तेवारी औ मिसिर महराज क्यार विनोद .दुनहू पहिलेहे हमरे पीछे परे हैं।

अरे,इनकी सबकी परवाहि न करौ।ई सब तौ बियाहे धरे है....लेकिन हनुमान दादा की दुलहिनि तौ खतम हुइ गयीं।उनके कउनिव औलादिउ नही है,आगे पूरी जिन्दगी परी है।तोहार भइया बतावति आँय कि हुनुमान दादा केरि उमिरि पैतिस ते जादा न होई।.. .

भउजी,खाली उमिरि कि बात नही है।...कहाँ हम बेवा तेलिन कहाँ वइ बीस बिसुआ के कनवजिया बाँभन,अच्छे किसान वुइ,पहेलवान वुइ-उनकी तौ बडी नाक है।...कस होई..यू बिहाव,.हमरी बदि गाँव म झगडा लडाई होय यू हम नही चहिति।..नरसिंह भगवान हमका जउनु गोरि चमडी औ रूपु दिहिनि है वहै हमार दुसमन है।


रजाना चन्दावती क्यार मुँहु देखतै रहि गय। फिरि वहिका मुँहु सोहरावै लागि,तीके छाती ते लगाय के कहेसि -तू तौ बहुतै सयानि हुइ गय रे।...द्याखौ,जउनु कुछु होई तउनु बाँभन टोले म होई।

..नाही भउजी,परेसानी हमरे घर-परिवार-औ सब खानदानिन केरि बढि जायी।

फिरि कस होई यू बियाहु...हम चहिति रहै कि तोहार घरु बार होतै...

द्याखौ, हनुमान दादा के घरउआ औ टोले वाले जब उनका याक दाँय गरियैहैं तब हमका औ हमरे घरउवन का दस दफे गरियैहै झगडा,मारपीट,कतल कुछौ हुइ सकति है।...गाँवै क मामिला है,दूरि होतै तबहू तके ठीक रहै।..

फिरि का होई ?...फिरि कैसे होई बिटिया?...हनुमान दादा तौ नीक मनई हैं।..

तौ अइस करौ कि पहिले हनुमान दादा का हमरे घरै बोलाय लेव,सब जने मिलिकै उनते साफ-साफ बात कइ लेव। उनके जिउ मा का है सब जानि लेव।..हमारि हैसियत उनकी जिन्दगी मा का होई,उनके घर मा का होई,काल्हि जो लरिका बच्चा पैदा हुइहै तौ उनका घर जादाति मा कुछु हक होई कि न होई?...हम रखैल कही जाब कि उनकी दुलहिनि,ई सब बातै पूछि लेव।

रजाना कि आँखी खुलि गयीं,कहेसि—‘वाह,बिटिया तुम तौ याक-याक बात साफ कइ दीन्हेव। मोर जिउ खुस हुइगा ।


रजाना के तीनि बिटिया औ एकु लरिकवा रहै। सब के सब अबही नान्ह रहैं,बडकवा मुस्किल ते दस साल-क होई। आजु सब कोल्हउरे ते ताजा गुडु लाये रहैं।...असलियत मा ठाकुर दादा केरि ऊँख पेरी गय रहै,उनहिन क्यार गुडु बनति रहै,हर दफा उनका दुइ याक पारी गुडु तौ परसाद तना बँटि ही जाति है।चन्दावती के घर के बगलैम रहै कोल्हउरु...घर मा ताजे गुडु की खुसबू भरि गै रहै। बडी सोंधि होति है ताजे गुडु की खुसबू। का लरिका का बडे-बूढ सबकी जबान लटपटाय जाति है।चन्दावती के घरमा वहै सोंधि खुसबू भरि गय रहै।...मानौ गाँवम कहू बिसाल जग्य़- हवन भवा होय। --रजाना लरिकवा के हाथे ते तिनिकु गुडु लइकै चन्दावती के मुँहमा डारि दीन्हेसि

मँहु मीठ कइ लेव, अब जउनु नरसिंग भगवान करिहै...तउनु नीक करिहैं।...बिटिया तुम चिंता न कीन्हेव। तोहरे दद्दू ते सब तय कराय लीन जायी।

ठीक है भउजी हमका कउनिव चिंता नही है।

चारिव लरिका गुडु चाँटि-चाँटि नाचति रहै। छोटकवा अबै ठीक ते चलि न पावति रहै तेहूँ नान्हि कि हथेली पर तिनुक गुडु धरे आँगन मा ड्वालै लाग रहै। रजाना औ चन्दा सबु देखि कै अपनी खुसी ते झूमै लागीं।

अँधेरु होय लाग रहै।तिनिक देर बादि रजाना चउका मा जाय कै ढेबरी जलाय दीन्हेसि। तब दौलतिपुर जइसे गाँवन के घरन मा बिजुली न रहै। बिजुली आय गय रहै लेकिन बसि चक्की-इस्पेलर-टूबेल चलै लाग रहै। दौलतिपुर मा परधान दादा के टेबुल पर यू सब इंतिजाम हुइगा रहै। बिजुली दिन मा पाँच-छ घण्टा ते जादा न आवति रहै। अब अतना हुइगा रहै कि गाँव मा पिसनहरिन क्यार कामु कम हुइगा रहै,तेलिन क्यार कामु तकरीबन खतम हुइगा रहै। टेम-बेटेम जब बिजुली होय तौ पानी मिलि जाति रहै। दौलतिपुर मा अब हर टेम कुछु न कुछु हरियाली देखाय लागि रहै। गाँवै मा हरी ताजी तरकारी मिलै लागि रहै।

रजाना बगल के घर ते लउकी लइ आयी रहै। चन्दावती सिलौटी पर मसाला पीसै लागि ,रजाना तरकारी काटि लीन्हेसि,फिरि चन्दावती आँटा माडै लागि रजाना तरकारी छौंकिसि तीकै चन्दावती पनेथी पोय लीन्हेसि। दूनौ नन्द भउजाई यही तना कामु निपटाय लेती रहै,पता नही का मामिला रहै कि नन्द भउजी मा अतना पियारु बहुत कम द्याखै क मिलति हैवहौ जब नन्द बेवा होय..

आजु तौ अइसेहे कुछु मन की खुसी बढिगै रहै। लेकिन चन्दावती बहुतै सावधान रहै ..वा पढी तो पाँचै दर्जा रहै तेहूँ बुद्धिमानी मा अव्वल रहै। राति मा संकर रजाना ते पूछेनि- का कहेसि चन्दा?

चन्दा कहती है कि हनुमान दादा का घरै बोलाय लेव ...तो उनते सब बात कइ लीन जाय ,कहती हैं हम रखैल बनिकै न रहि पइबे।

या बात तो ठीक है।...काल्हि बोलाय लीन जायी। तीनिउ जने बैठिके उनते मसबिरा करिबे तब फैसला कीन जायी।

रजाना फिरि न जानै अउरु का का कहति रहिगै ..संकर सोय गे। फिरि रजाना जब जानेसि कि संकर सोयगे तो वहौ चुपाय रही। छोटकन्ना रजाना के अँचरे मा मुँहु मारै लाग। रजाना वहिका दूधु पियावै लागि। तीनिव बिटेवा सोय गयी रहै। तीनिव बिटेवा चन्दा के साथ बरोठेम पइरा पर कथरी बिछाय के स्वउती रहैं।

दुसरे दिन संकर हनुमान दादा ते सबु हाल बतायेनि। हनुमान दादा पहिलेहे कहि चुके रहैं। वुइ संकर के साथ वहिके घरै आयगे।

हनुमान दादा चन्दावती ते पूछेनि-हाँ तो बताओ चन्दा?...तुम का चहती हौ?

की बिधि करिहौ हमते बिहाव। पंडित जी महराज!, अपनी बिरादरी औ घर वालेन ते का बतइहौ?...तेलिन के घरते बँभनन कि रिस्तेदारी तौ हम कबहूँ सुना नही।

हनुमान दादा क्यार सबु ज्ञान भुलाय गवा बिचारे आँखिन ते भुँइ ख्वादै लाग....फिरि खाँसति खखारति भये कहेनि-

हमरे घर वालेन कि चिंता तुम काहे करती हौ।

...तो फिरि अउरु को करी ? हमारि हैसियत तुमरे घर मा का होई?....रोजु गारी खायी,अउरु तुमरी रखैल कही जायी...वहिते तौ हम बेवै ठीक हन।

हनुमान दादा केरि पहेलवानी भुलाय गय,फिर लार घूँटति भये कहेनि-

द्याखौ चन्दावती,यू जानि लेव कि इंसान अपनि जुम्मेदारी लइ सकति है।..पूरे गाँवसमाज औ जवारि कि जुम्मेदारी कोऊ नही लइ सकति। ..हम अपने घर केरि जुम्मेदारी लइ रहेन है-काहे ते हम अपने घर के मुखिया हन.अबहीं हमारि द्याह दसा ठीक है।

लेकिन हमरे ऊपर तुम्हारि दादागीरी न चली। हम तुमका महराज कहिबे।

तो हम तुमका महरानी कहा करब। ..सब जने हँसै लाग।

चन्दा फिरि बोली-

की बिधि करिहौ हमते बिहाव ...बेवा मेहेरिया क्यार बिहाव तौ कबहूँ न सुना न द्याखा गवा... ।

तुम चिंता न करौ , बिहाव नारसिंघन कि कूटी पर होई।

नारसिंघन की कूटी पर काहे?..

भगवान नरसिंघ हमरे बिहाव के साक्षी हुइहै।..उनहिन के सामने पंडित जी करवइहै हमार बियाहु।

महराज, यू जानि लेव कि पथरन के भगवान कउनिव जरूरति होई तौ गवाही न द्याहै। कुछु गाँवौ के जिन्दा मनई होयक चही।

कुछु तुम्हरे घर के ,कुछु हमरे घर के,परधान रामफल दादा अउरु गाँव के दस पन्दरह मनई-मेहेरुआ हुइ जइहै।...अउरु जरूरति होई तौ..

अतने गवाह बहुत है।...अब यू बताओ महराज कि जो काल्हि हमार लरिका बच्चा होई तो वहिका तुमरी जमीन जायदाति मा हकु होई कि नही।चन्दावती के सब सवाल हनुमान महराज पर भारी परे लेकिन का कीन जाय अब वुइ अपन सबु कुछु हारिगे रहै। कहेनि-काहे न होई?...हमरे जीते जी तुम जइस चहिहौ तइसै होई...निस्चिंत हुइ जाव।


चन्दावती के जिउ मा जउनु आवा तउनु सबु पूँछि लीन्हेसि।वहिका कउनौ डेरु न रहै।कहेसि-

औ तुमरे बादि का होई ,हमरे लरिका बच्चन क्यार हकु मिली कि न मिली।

युहु स्वाल बडा कठिन रहै,हनुमान महराज चारिव खाना चित हुइगे...जबान लडखडाय गय--

जब लरिका बच्चा .....हुइहैं तब उनहुन क्यार ..सबु..हकु मिली।..अब हमारिव बात सुनि लेव- बियाहे के बादि हमका याकौ दिन अकेले न छोडेव।..हमरी तरफ ते तुमका सब हक मिलिहै।

तो ठीक है..महराज ! हमहू तयार हन।

भइया संकर ,द्याखौ अबही गाँव मा केहू ते यहि बात कि चर्चा न कीन्हेव। ...परसों सूकबार के दिन तुम अपने घर के सब लरिका बिटियन का लइके कूटी पर पहुँचि जायेव।..बियाहे कि बात अबही न कीन्हेव,कोऊ पूछै तो कहेव नारसिंघन की पैकरमा पर जाय रहेन है।बियाहे के बादि सबका अपने आप धीरे धीरे पता लागी।

ठीक है दादा।..हम ध्यान रखिबे।

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

अवधी लोक के कवि गिरधर कविराय

लोक जीवन के कवि गिरधर की काव्य भाषा अवधी है ऐसा मुझे जान पडता है।आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार उनका जन्म सम्वत-1770 के आसपास हुआ होगा।गिरधर जी कृषिचेतना,नीति वचन,ज्ञान-वैराग्य आदि के कवि माने जाते हैं किंतु उन्होने सोने का व्यापार करने वाले सेठों के घर की व्याकुल नारियों को भी निकट से अपने गाँव जवार मे देखा होगा,इसलिए वो उसकी दशा का भी मार्मिक चित्रण करते हैं।देखें लोक लोक कवि गिरधर की दो कुंडलिया-

1.हीरा

हीरा अपनी खानि को,बार बार पछिताय।

गुन कीमत जानै नहीं,तहाँ बिकानो आय।।

तहाँ बिकानो आय,छेद करि कटि में बांध्यो।

बिन हरदी बिन लौन मांस ज्यों फूहर रांध्यो॥

कह गिरधर कविराय,कहाँ लगि धरिए धीरा।

गुन कीमत घटि गयी,यहै कहि रोयेव हीरा॥

2. सोना

सोना लादन पिव गये,सूना करि गये देश।

सोना मिला न पिव मिले,रूपा हो गये केश॥

रूपा हो गये केश,रोय रंग रूप गँवावा।

सेजन को विस्राम,पिया बिन कबहुँ न पावा॥

कह गिरधर कवि राय,लोन बिन सबै अलोना।

बहुरि पिया घर आव,कहा करिहौ लै सोना॥

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

आज जनकवि अवधी के निराला पं.बंशीधर शुक्ल की 107 वी जयंती है। प्रस्तुत है शुक्ल जी की एक मार्मिक कविता। देखिये तबसे अब तक किसान की दुनिया में क्या बदला है।

यक किसान की रोटी

यक किसान की रोटी,जेहिमाँ परिगइ तुक्का बोटी

भैया!लागे हैं हजारउँ ठगहार।

हँइ सामराज्य स्वान से देखउ बैठे घींच दबाये हइँ

पूँजीवाद बिलार पेट पर पंजा खूब जमाये हइँ।

गीध बने हइँ दुकन्दार सब डार ते घात लगाये हइँ

मारि झपट्टा मुफतखोर सब चौगिरदा घतियाये हइँ।

सभापती कहइँ हमका देउ, हम तुमका खेतु देवाय देई

पटवारी कहइँ हमका देउ, हम तुम्हरेहे नाव चढाय देई।

पेसकार कहइँ हमका देउ, हम हाकिम का समुझाय देई

हाकिम कहइँ हमइँ देउ, तउ हम सच्चा न्याव चुकाय देई।

कहइँ मोहर्रिर हमका देउ, हम पूरी मिसिल जँचाय देई

चपरासी कहइँ हमका देउ, खूँटा अउ नाँद गडवाय देई।

कहइँ दरोगा हमका देउ, हम सबरी दफा हटाय देई

कहइँ वकील हमका देउ, तउ हम लडिकै तुम्हइ जिताय देई।

पंडा कहइँ हमइँ देउ, तउ देउता ते भेंट कराय देई

कहइँ ज्योतिकी हमका देउ, तउ गिरह सांति करवाय देई।

बैद! कहइँ तुम हमका देउ, तउ सिगरे रोग भगाय देई

डाक्टर कहइँ हमइँ देउ, तउ हम असली सुई लगाय देई।

कहइँ दलाल हमइँ देउ, हम तउ सब बिधि तुम्हँइ बचइबै,

हमरे साढू के साढू जिलेदार।

यक किसान की रोटी,जेहिमाँ परिगइ तुक्का बोटी

भैया!लागे हैं हजारउँ ठगहार।

पं.बंशीधर शुक्ल

शनिवार, 1 जनवरी 2011

समीक्षा
बैसवाडी के नए गीत
भारतेन्दु मिश्र
 
 कविवर चन्द्रप्रकाश पांण्डे के बैसवाडी के नये गीत शीर्षक काव्य संग्रह को पढते हुए मन प्रसन्न हुआ। सौभाग्य से कवि श्री चन्द्रप्रकाश पाण्डे लालगंज रायबरेली के बैसवारा क्षेत्र मे जनमे और उनकी मातृभाषा बैसवारी है इसलिए उन्होने बैसवारी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम चुना। बैसवाडी या बैसवारी अवधी भाषा की ही एक बोली है। जायसी भी रायबरेली के थे। तात्पर्य यह कि कवि के पास अपनी भाषा मे कविताई करने का बहुत मौका है। कवि के पास जातीय छन्द हैं। गीतो के अलावा पुस्तक मे दोहे घनाक्षरी तथा  बैसवाडी कूट शीर्षक से कुछ फुटकर चौपाइयाँ भी संकलित हैं,अवध मे कूठ बोलने का अर्थ है व्यंग्य करना। कवि ने उसे ही कूट कहा होगा ऐसा अनुमान है। हमारे गाँवों मे आज भी व्यंग्य वचन दोहे और चौपाई के रूप मे चलते हैं।सम्भवत: यह तुलसी जायसी  राधेश्याम रामायण और गडबड रामायण आदि की सतत दीर्घ  लोक परम्परा का परिणाम हो। जिससे कवि की रचनात्मकता के अलावा उसकी प्रयोग क्षमता का भी परिचय मिलता है। दो बैसवाडी कूट देखें-
मंहगाई के बोल अमोल
खटिया खडी बिस्तरा गोल।
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ककुआ कहाँ कचेहरी जाई
झूठि कसम गंगा कै खाई।
 कुछ दोहे भी बडे मार्मिक बन गये हैं।विशेष बात यह भी है कि कवि के पास एक प्रगतिशील सोच भी सदैव विद्यमान दिखाई देती है। एक चित्र देखें-
सास बहू कुस्ती लडैं,बाप पूत मा मारु
कटाजुज्झ घर घर मची,जिनगी हुइगै भारु।
अवधी कविता मे ऐसे काव्य चित्र बहुत कम देखने को मिलते हैं। कवि के पास अवधी की जातीय छ्न्द परम्परा के अलावा अपने घर गाँव के अनुभवों की थाती भी है। गीतों के प्रयोग तो और भी सुन्दर हैं। ओ रे सुखुवा,का कम कीन कमाई,नौकरी सरकारी,फूलन कै कमताली,लरिका सूधे ब्वालति हैं,नकुनन ऊपर पानी,मटका कबौ न रोय,लरिकन बरे लंगोटी का,रामकली आदि गीत तो संग्रह की उपलब्धि कहे जा सकते हैं। हालाँकि प्रूफ की कुछ त्रुटियाँ रह गयी हैं और कहीं कहीं लिखित रूप या कहे कि पाठ्य रूप में छन्द की दृष्टि से मात्राओ की कुछ कमियाँ रह गयी हैं जो सस्वर गीतपाठ करते समय शायद न प्रतीत हों इसके बावजूद कवि की कविताई और अनुभवो की ताजगी मे कोई अंतर नही पडता। अभी अवधी का मानक रूप विकसित नही हुआ है यह भी एक कारण है। श्रव्य रूप मे इन कविताओ की व्यंजना सटीक है। बैसवाडे के गाँव का एक वास्तविक चित्र देखें-
सबते राम जोहार बनी है
लरिका सूधे ब्वालति हैं
पुछतिउ हैं का कबौ बहुरिया
बप्पा रोटी खाय लेव
बडी दूरि ते आयो पाहुन
बइठौ तनि सँहिताय लेव।
अंतत: कवि चन्द्रप्रकाश पाण्डे के इस बैसवाडी के नये गीत शीर्षक काव्य संकलन मे सचमुच बैसवारी या कहे कि अवधी के कुछ नये गीत और नयी प्रयोगधर्मिता अवश्य देखने को मिलती है। आधुनिक अवधी के कविसमाज मे इस पुस्तक का स्वागत किया जायेगा ऐसा मेरा विश्वास है। कवि ने अपनी इन कविताओ के बहाने बैसवाडी बोली के अनेक अप्रचलित शब्दो को पुनर्जीवित किया है। कवि को बधाई।